धार्मिक

गणेश जी को पार्वती जी का दुलारा कहा जाता है.
  • August 28, 2021
गणेश जी को पार्वती जी का दुलारा कहा जाता है. गणेश जी के बारे में कहा जाता है कि गणेश जी ने एक बार पार्वती जी की आज्ञा का पालन करने के लिए शिव जी से लड़ाई की थी. गणेश जी को गजानन के नाम से भी जाना जाता है और दुख हरता के नाम से गणेश जी के भक्त गणेश जी की भक्ति करते हैं.

गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर गणेश जी के भक्त पूरे विश्वास के साथ गणेश जी की आराधना करते हैं और साथ ही गणेश जी के विसर्जन के समय यही कामना करते हैं कि वो हर साल गणेश चतुर्थी को पूरे विश्वास के साथ मनाएं.

माता पार्वती जी का परोपकारी रूप

एक बार महादेवजी पार्वती सहित नर्मदा के तट पर गए. वहां एक सुंदर स्थान पर पार्वतीजी ने महादेवजी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की. तब शिवजी ने कहा- हमारी हार-जीत का साक्षी कौन होगा? पार्वती ने तत्काल वहां की घास के तिनके बटोरकर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा करके उससे कहा- बेटा! हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, किन्तु यहां हार-जीत का साक्षी कोई नहीं है. अतः खेल के अन्त में तुम हमारी हार-जीत के साक्षी होकर बताना कि हममें से कौन जीता, कौन हारा?

खेल आरंभ हुआ. दैवयोग से तीनों बार पार्वती जी ही जीतीं. जब अंत में बालक से हार-जीत का निर्णय कराया गया तो उसने महादेवजी को विजयी बताया. परिणामतः पार्वतीजी ने क्रुद्ध होकर उसे एक पांव से लंगड़ा होने और वहां के कीचड़ में पड़ा रहकर दुःख भोगने का श्राप दे दिया.

बालक ने विनम्रतापूर्वक कहा- मां! मुझसे अज्ञानवश ऐसा हो गया है. मैंने किसी कुटिलता या द्वेष के कारण ऐसा नहीं किया. मुझे क्षमा करें तथा शाप से मुक्ति का उपाय बताएं. तब ममतारूपी मां को उस पर दया आ गई और वे बोलीं- यहां नाग-कन्याएं गणेश-पूजन करने आएंगी. उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे. इतना कहकर वे कैलाश पर्वत चली गईं.

एक वर्ष बाद वहां श्रावण में नाग-कन्याएं गणेश पूजन के लिए आईं. नाग-कन्याओं ने गणेश व्रत करके उस बालक को भी व्रत की विधि बताई. तत्पश्चात बालक ने 12 दिन तक श्रीगणेशजी का व्रत किया. तब गणेशजी ने उसे दर्शन देकर कहा- मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूं. मनोवांछित वर मांगो. बालक बोला- भगवन! मेरे पांव में इतनी शक्ति दे दो कि मैं कैलाश पर्वत पर अपने माता-पिता के पास पहुंच सकूं और वे मुझ पर प्रसन्न हो जाएं.

गणेशजी ‘तथास्तु’ कहकर अंतर्धान हो गए. बालक भगवान  शिव के चरणों में पहुंच गया. शिवजी ने उससे वहां तक पहुंचने के साधन के बारे में पूछा.

तब बालक ने सारी कथा शिवजी को सुना दी. उधर उसी दिन से अप्रसन्न होकर पार्वतीजी शिवजी से भी विमुख हो गई थीं. तदुपरांत भगवान शंकर ने भी बालक की तरह 21 दिन पर्यन्त श्रीगणेश का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई.

वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुंची. वहां पहुंचकर पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा- भगवन! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास भागी-भागी आ गई हूँ. शिवजी ने ‘गणेश व्रत’ का इतिहास उनसे कह दिया.

तब पार्वतीजी ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन पर्यन्त 21-21 की संख्या में दूर्वा, पुष्प तथा लड्डुओं से गणेशजी का पूजन किया. 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वतीजी से आ मिले. उन्होंने भी मां के मुख से इस व्रत का माहात्म्य सुनकर व्रत किया.

कार्तिकेय ने यही व्रत विश्वामित्रजी को बताया. विश्वामित्रजी ने व्रत करके गणेशजी से जन्म से मुक्त होकर ‘ब्रह्म-ऋषि’ होने का वर मांगा. गणेशजी ने उनकी मनोकामना पूर्ण की. ऐसे हैं श्री गणेशजी, जो सबकी कामनाएं पूर्ण करते हैं.

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