जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण ग्रीनहाउस गैसों को माना जाता है। जिनमें कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, क्षोभमंडलीय ओजोन तथा क्लोरो-फ्लोरोकार्बन्स प्रमुख हैं। ये गैसें सूर्य से आने वाले लघुतरंगीय विकिरण को तो पृथ्वी पर आने देती हैं पर पृथ्वी से वापस जाने वाले दीर्घतरंगीय विकिरण को अवशोषित कर लेती हैं, जिससे पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होती है। इसे ग्रीनहाउस इफेक्ट कहते हैं। ग्रीनहाउस इफेक्ट के कारण वैश्विक तापमान वृद्धि होने से जलवायु परिवर्तन का संकट खड़ा हो गया है। हालांकि जलवायु परिवर्तन के अन्य कारण भी हैं लेकिन ग्रीनहाउस इफेक्ट भी जलवायु परिवर्तन के विभिन्न स्तरों पर अनेक दुष्प्रभाव सामने आने लगे हैं। यह वर्तमान समय का सर्वाधिक ज्वलंत मुद्दा बन चुका है। आज संपूर्ण विश्व के पर्यावरणविद, वैज्ञानिक, राजनेता
एवं नीति निर्धारक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से चिंतित हैं।
औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप विभिन्न उद्योगों, कल-कारखानों और परिवहन के साधनों में जीवाश्म ईंधनों का अंधाधुंध उपयोग होने से पृथ्वी के वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों तथा
कार्बन उत्सर्जन की मात्रा में अत्यधिक वृद्धि से पृथ्वी के तापमान में हुई वृद्धि से कई गंभीर पर्यावरणीय खतरे उत्पन्न हो गए हैं। जैसे- सूखा, बाढ़, तूफान, चक्रवात, वर्षा का असमान वितरण । तापमान बढ़ने से ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिससे समुद्र के जलस्तर में वृद्धि हो रही है और तटवर्ती क्षेत्रों, टापुओं तथा द्वीपीय देशों के जलमग्न होने की आशंका है। समुद्र के जलस्तर में 1949 से अब तक 15 सें०मी० की वृद्धि हो चुकी है। कृषि-चक्र के स्वरूप में बदलाव होने के साथ-साथ फसलों
की उत्पादकता घटने लगी है, मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव होने लगा है। यही कारण है कि पृथ्वी के बढ़ते तापमान को कम करने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती का मुद्दा आज वैश्विक चर्चा का विषय बना हुआ हैं। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के तापमान में वृद्धि को सैद्धांतिक रूप से जलवायु परिवर्तन की संज्ञा दी है। उनका कहना है कि निकट भविष्य में पृथ्वी के तापमान में वृद्धि से कॉलेरा, इबोला, बर्ड फ्लू प्लेग और टीबी जैसी बीमारियों का प्रसार अत्यंत तीव्रता से होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर जलवायु परिवर्तन इसी तेजी से होता रहा तो उक्त बीमारियों से करोड़ों लोगों की मृत्यु होने की संभावना है।