करवा चौथ शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए करवाचौथ का व्रत रखती है. इस दिन महिलाएं पूरा दिन निर्जला व्रत रखती हैं और चांद देखकर व्रत का पारण करती हैं. इस साल करवा चौथ का व्रत 24 अक्टूबर, रविवार के दिन मनाया जाएगा. सूर्योदय से पहले ही महिलाएं उछकर सरगी लेती हैं और इसके बाद पूरा दिन निर्जला व्रत रखती हैं. दिन के समय व्रत कथा और पूजन आदि किया जाता है. करवाचौथ के व्रत को करक चतुर्थी, दशरथ चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन महिलाएं सोलह ऋंगार करती हैं, पूजा और करवा चौथ व्रत की कथा सुनने के बाद चांद देखकर व्रत पारण किया जाता है.
इस दिन भगवान शिव, गणेश जी और स्कन्द यानि कार्तिकेय के साथ बनी गौरी के चित्र की सभी उपचारों के साथ पूजा की जाती है. कहते हैं कि इस व्रत को करने से जीवन में पति का साथ हमेशा बना रहता है. साथ ही, सौभाग्य की प्राप्ति और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है. इस बार करवाचौथ के दिन एक विशेष योग बन रहा है. ये मंगलकारी योग शुभ माना जाता है.
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ: 24 अक्टूबर तड़के 3 बजकर 2 मिनट से
चतुर्थी तिथि समाप्त: 25 अक्टूबर सुबह 5 बजकर 43 मिनट तक
- चांद निकलने का समय 8 बजकर 11 मिनट पर है. पूजन के लिए शुभ मुहूर्त 24 अक्टूबर 2021 को शाम 06:55 से लेकर 08:51 तक रहेगा.
इस चतुर्थी की तिथि को संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है. संकष्टी चतुर्थी का पर्व गणेश जी को समर्पित है. इस दिन गणेश भगवना की भी विशेष रूप से पूजा की जाती है. कहा जा रहा है कि इस बार 24 अक्टूबर करवाचौथ के दिन रात 11 बजकर 35 मिनट तक वरीयान योग रहेगा. ये योग मंगलदायक कार्यों में सफलता प्रदान करता है. वहीं, देर रात 1 बजकर 2 मिनट तक रोहिणी नक्षत्र रहेगा।
करवाचौथ पूजा विधि
-करवा चौथ पूजा करने के लिए घर के उत्तर-पूर्व दिशा के कोने को अच्छे से साफ करलें और लकड़ी की चौकी बिछाकर उस पर शिवजी, मां गौरी और गणेश जी की तस्वीर या चित्र रखें. साथ ही, उत्तर दिशा में एक जल से भरा कलश स्थापित कर उसमें थोड़े-से अक्षत डालें.
इसके बाद कलश पर रोली, अक्षत का टीका लगाएं और गर्दन पर मौली बांधें.
तीन जगह चार पूड़ी और 4 लड्डू लें, अब एक हिस्से को कलश के ऊपर, दूसरे को मिट्टी या चीनी के करवे पर और तीसरे हिस्से को पूजा के समय महिलाएं अपने साड़ी या चुनरी के पल्ले में बांध कर रख लें. अब करवाचौथ माता के सामने घी का दीपक जलाकर कथा पढ़ें.
पूजा करने के बाद साड़ी के पल्ले और करवे पर रखे प्रसाद को बेटे या अपने पति को खिला दें. वहीं, कलश पर रखे प्रसाद को गाय को खिला दें.
पानी से भरे हुए कलश को पूजा स्थल पर ही रहने दें. चन्द्रोदय के समय इसी कलश के जल से चन्द्रमा को अर्घ्य दें और घर में जो कुछ भी बना हो, उसका भोग चंद्रमा को लगाएं. इसके बाद पति के हाथों से जल ग्रहण करके व्रत का पारण करें.