होलिका दहन की पूजा के समय पढ़े ये कथा, मिलेगी हर परेशानी से निजात
होलिका दहन का दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। होलिका दहन के दिन विधि-विधान से पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि पूजा करने के लिए भक्त प्रहलाद की कथा सुनने से हर परेशानी से छुटकारा भी मिल जाता है
होली से पूर्व रात्रि में होलिका दहन करते हैं. होलिका दहन हर साल फाल्गुन पूर्णिमा की रात में किया जाता है. उसके अगले दिन सुबह रंगवाली होली खेलते हैं. होलिका दहन क्यों करते हैं? होलिका भक्त प्रह्लाद को आग में जलाकर क्यों मारना चाहती थी? ये ऐसे सवाल हैं, जो सभी के मन में आते हैं. होलिका दहन के इतिहास को जानने के लिए होलिका और भक्त प्रह्लाद की कथा जाननी जरूरी है. आइए जानते हैं होलिका दहन की पौराणिक कथा के बारे में.
होलिका दहन कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने अपने कठोर तप से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर वरदान मांगा. उसने कहा कि उसे कोई भी मनुष्य, पुरुष या महिला, पशु या पक्षी, दिन या रात, घर या बाहर कहीं भी, अस्त्र-शस्त्र से नहीं मार सकता है. ब्रह्मा जी से वरदान पाकर वह स्वयं को भगवान समझने लगा. अपने राज्य में उसने सभी प्रजा से स्वयं की पूजा करने का आदेश दे दिया.
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद श्रीहरि विष्णु का भक्त था. वह भगवान विष्णु की भक्ति में डूबा रहता था. हिरण्यकश्यप ने उसे बार बार विष्णु भक्ति छोड़ने को कहा, लेकिन भक्त प्रह्लाद कहां मानने वाले थे. हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु समझता था. प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति छोड़ दें, इसके लिए हिरण्यकश्यप ने उनको कभी पहाड़ से नीचे फेंका, कभी नदी में डूबो कर मारना चाहा, तो कभी हाथी के पैरों तले कुचलने की कोशिश की, श्रीहरि की कृपा से भक्त प्रह्लाद बार बार बच जाते.
इस घटना के बाद भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप को घर के चौखट के बीच अपने तेज नाखूनों से मार डाला. होलिका दहन की घटना को असत्य पर सत्य की जीत के रुप में मनाते हैं. यह घटना फाल्गुन पूर्णिमा को हुई थी, इसलिए हर साल इस तिथि को होलिका दहन करते हैं. उसके अगले दिन होली खेली जाती है.
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