- इस बार 17 सितंबर, शनिवार को विश्वकर्मा पूजा का पर्व मनाया जाएगा। इस पर्व में भगवान विश्वकर्मा के साथ-साथ मशीनों और औजारों की पूजा भी की जाती है। विश्वकर्मा को देवशिल्पी भी कहा जाता है।
भगवान विश्वकर्मा का वर्णन अनेक धर्म ग्रंथों में किया गया है। इन्हें देवशिल्पी कहा जाता है यानी देवताओं का इंजीनियर। इस बार 17 सितंबर, शनिवार को विश्वकर्मा पूजा का पर्व मनाया जाएगा। धर्म ग्रंथों के अनुसार, बह्मदेव ने विश्वकर्मा को सष्टि का शिल्पीकार नियुक्त किया था। उन्होंने स्वर्ग लोक, इंद्रपुरी, द्वारिका नगरी, सोने की लंका, सुदामापुरी जैसे कई नगर और स्थानों का निर्माण किया। आगे जानिए देवशिल्पी विश्वकर्मा से जुड़ी खास बातें…
- विश्वकर्मा ने ही बनाई थी द्वारिका नगरी
श्रीमद्भागवत के अनुसार, द्वारिका नगरी का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। उस नगरी में विश्वकर्मा का विज्ञान (वास्तु शास्त्र व शिल्पकला) की निपुणता प्रकट होती थी। द्वारिका नगरी की लंबाई-चौड़ाई 48 कोस थी। उसमें वास्तु शास्त्र के अनुसार बड़ी-बड़ी सड़कों, चौराहों और गलियों का निर्माण किया गया था।
- सोने की लंका भी इन्होंने ही बनाई
धर्म ग्रंथों के अनुसार, सोने की लंका का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था। माल्यवान, सुमाली और माली नाम के तीन पराक्रमी राक्षस थे। उन्होंने विश्वकर्मा से कहा कि आज हमारे लिए एक विशाल निवास स्थान का निर्माण कीजिए। तब विश्वकर्मा ने उन्हें बताया कि दक्षिण समुद्र तट पर मैंने इंद्र की आज्ञा से सोने से निर्मित लंका नगरी का निर्माण किया है। तुम वहां जाकर रहो।
महाभारत के अनुसार, तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली के नगरों का विध्वंस करने के लिए भगवान महादेव जिस रथ पर सवार हुए थे, उस रथ का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। वह रथ सोने का था। उसके दाहिने चक्र में सूर्य और बाएं चक्र में चंद्रमा विराजमान थे। दाहिने चक्र में बारह आरे तथा बाएं चक्र में 16 आरे लगे थे।
- विश्वकर्मा के पुत्र थे नल-नील
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम के आदेश पर समुद्र पर पत्थरों से पुल का निर्माण किया गया था। रामसेतु का निर्माण मूल रूप से नल नाम के वानर ने किया था। नल शिल्पकला (इंजीनियरिंग) जानता था क्योंकि वह देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा का पुत्र था। अपनी इसी कला से उसने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था।
इन मंत्रों का करें जाप
विश्वकर्मा पूजा के दिन भगवान विश्वकर्मा और भगवान विष्णु का ध्यान करें. साथ ही में फुल व अक्षत लेकर इस मंत्र का जाप करें
ऊं आधार शक्तपे नमः
ऊं कूमयि नमः
ऊं अनंतम नमः
ऊं पृथिव्यै नमः
ऊं श्री सृष्टतनया सर्वसिद्धया विश्वकर्माया नमो नमः.
मंत्र पढ़ने के बाद हाथ में रखे अक्षत को चारों तरफ छिड़क दें और इसके बाद पीली सरसों लेकर चारों दिशाओं को बांध लें. पीली सरसों से सभी दिशाओं को बांधने के बाद अपने हाथ में रक्षा सूत्र (पत्नी हों तो उनके हाथ में भी) बांध लें और हाथ में जो फूल रखा था उसे जल पात्र में रख दें. इसके बाद हृदय में देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करते हुए विधिवत पूजा शुरू करें.
- विश्वकर्मा भगवान की आरती-
ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा,
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा.
आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया,
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया, जय श्री विश्वकर्मा…
ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नहींं पाई,
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई.
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना,
संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना, जय श्री विश्वकर्मा…
जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी,
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी.
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे,
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे, जय श्री विश्वकर्मा…
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे,
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे.
श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे,
कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे, जय श्री विश्वकर्मा…