हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि और महानवमी या दुर्गा नवमी का खास महत्व माना जाता है. नवरात्रि के 9 दिन मां दुर्गा के नौ अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है, साथ ही व्रत भी रखा जाता है. मां का विशेष आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दुर्गा सप्तशती, चालीसा-आरती व मंत्रों का पाठ किया जाता है. नवरात्रि में देवी दुर्गा के शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री स्वरूप का पूजन किया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार आज नवरात्रि की नवमी है. इस दिन सिद्धिदात्री माता की उपासना की जाती है.
नवमी पर देवी दुर्गा के नौवें स्वरुप यानी मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. मान्यता है कि सिद्धिदात्री की पूजा करने से पापों का नाश होता है. माता के इस स्वरूप की पूजा करने से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं. माता के पूजन से रोग-दोष नष्ट होते हैं और मोक्ष मिलता है. कहा जाता है कि महाकाल खुद भी देवी के सिद्धिदात्री स्वरूप की उपासना करते हैं. आज माता रानी के भक्त कन्या पूजन कर नवरात्रि के व्रत का समापन भी करते हैं
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
विजयादशमी का शुभ मुहूर्त-
विजया दशमी 4 अक्टूबर को दोपहर 02 बजकर 21 मिनट से प्रारंभ होगी।
3 अक्टूबर को शाम 04 बजकर 37 मिनट पर नवमी तिथि शुरू होगी, जो कि 4 अक्टूबर को दोपहर 02 बजकर 20 मिनट तक रहेगी। हिंदू पंचांग के अनुसार, महानवमी 4 अक्टूबर को मनाई जाएगी। मंगलवार दोपहर 1.32 बजे तक हवन का बढ़िया मुहूर्त है। वहीं सुबह 9.10 बजे से साढ़े 11 बजे के बीच स्थिर लग्न में भी हवन काफी लाभकारी माना जा रहा है। हवन का तीसरा शुभ मुहूर्त सुबह साढ़े 11 बजे से दोपहर डेढ़ बजे तक रहेगा। नवमी तिथि के समापन से पहले हवन करना लाभकारी माना गया है।-------
आम की लकड़ियां, बेल, नीम, पलाश का पौधा, कलीगंज, देवदार की जड़, गूलर की छाल और पत्ती, पापल की छाल और तना, बेर, आम की पत्ती और तना, चंदन का लकड़ी, तिल, कपूर, लौंग, चावल, ब्राह्मी, मुलैठी, अश्वगंधा की जड़, बहेड़ा का फल, हर्रे, घी, शक्कर, जौ, गुगल, लोभान, इलायची, गाय के गोबर से बने उपले, घी, नीरियल, लाल कपड़ा, कलावा, सुपारी, पान, बताशा, पूरी और खीर।
सबसे पहले हवन कुण्ड में अग्नि प्रज्ज्वलित करें। इसके बाद हवन साम्रगी गंध, धूप, दीप, पुष्प और नैवेद्य आदि अग्नि देव को अर्पित करें। फिर घी मिश्रित हवन सामग्री से या केवल घी से हवन किया जाता है।
ओम पूर्णमद: पूर्णमिदम् पुर्णात पूण्य मुदच्यते, पुणस्य पूर्णमादाय पूर्णमेल विसिस्यते स्वाहा।
ओम भूः स्वाहा, इदमगन्ये इदं न मम।
ओम भुवः स्वाहा, इदं वायवे इदं न मम।
ओम स्वः स्वाहा, इदं सूर्याय इदं न मम।
ओम अगन्ये स्वाहा, इदमगन्ये इदं न मम।
ओम घन्वन्तरये स्वाहा, इदं धन्वन्तरये इदं न मम।
ओम विश्वेभ्योदेवभ्योः स्वाहा, इदं विश्वेभ्योदेवेभ्योइदं न मम।
ओम प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये इदं न मम।
ओम अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा, इदमग्नये स्विष्टकृते इदं न मम।
माँ दुर्गा आरती
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी। तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी।।
जय अम्बे गौरी,…।
मांग सिंदूर बिराजत, टीको मृगमद को। उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको।।
जय अम्बे गौरी,…।
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै। रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै।।
जय अम्बे गौरी,…।
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी। सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःखहारी।।
जय अम्बे गौरी,…।
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती। कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत समज्योति।।
जय अम्बे गौरी,…।
शुम्भ निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती। धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती।।
जय अम्बे गौरी,…।
चण्ड-मुण्ड संहारे, शौणित बीज हरे। मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
जय अम्बे गौरी,…।
ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी। आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।।
जय अम्बे गौरी,…।
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं, नृत्य करत भैरू। बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू।।
जय अम्बे गौरी,…।
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता। भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति करता।।
जय अम्बे गौरी,…।
भुजा चार अति शोभित, खड्ग खप्परधारी। मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।।
जय अम्बे गौरी,…।
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती। श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति।।
जय अम्बे गौरी,…।
अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै। कहत शिवानंद स्वामी, सुख-सम्पत्ति पावै।।
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।